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कादम्बरी / पृष्ठ 120 / दामोदर झा

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9.
सूर्य अस्त भय गेल महाश्वेता आश्रम लग आयल
सब क्यो कान उठाय अकानय रोदन शब्द सुनायल।
कादम्बरी चौंकि मग दौड़लि कोन विपति पुनि अयलै
छलै तरलिका संग महाश्वेताक कतय की भेलै॥

10.
झटपट आश्रममे प्रवेश कय प्राणनाथके देखल
हाथ प्यर भूतल पसरल छल उनटल आँखि निरेखल।
हाय हाय कहि होश विगत भय भूमि उपर ओंघरायल
तकरा बाद कतय की होइ छै सुधि बुधि सकल गमायल॥

11.
देखि पत्रलेखा हुनका मृत मूर्छित शव सन बनले
सब टा देखि महाश्वेता बपहारि काटिके कनले।
होश भेल किछु छनपर कादम्बरी स्वयं उठि बैसलि
पूछल आनि तरलिकाके लग ओ सब किछु निरदेसलि॥

12.
सुनलनि सब वृत्तन्त गुनल अपनहुँके मुइले लेखथि
रोदन केर झौहरि बिच निश्चय भय कुमरक मुख देखथि।
कानथि नहि, नहि नोर बहाबथि, नहि किछ बात उचारल
मदलेखा अवलोकि हिनक थिति हिनकहुँ मनमन हारल॥

13.
गरदनि धयक महल खूब नोरो बहाय सखि कानू
फाटत हृदय शोक जँ नहि बहरायत ई कथ मानू।
माता पिता अनाथे हयता अहूँ बिदा जँ हयबे
हयतनि बड़ अवलम्ब अहाँ जँ कहुना जीवित रहबे॥