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कादम्बरी / पृष्ठ 131 / दामोदर झा

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64.
अपनहिं अहाँ वरण पति कयलहुँ सुनि मन अति प्रमुदित अछि
ताहूपर अवतार चन्द्र केर ई सोना सुरभित अछि।
शाप दोषसँ गत जीवन छथि किन्तु न वपु कुम्हलायल
सत्य हयत विश्वास करू जे किछु नभवाणी गायल॥

65.
हुनके सेवा परम तपस्या अछि से निश्छल करबे
रौद जाड़ बरिसातो हुनका आराधै लय सहबे।
कहियो शापक अन्त अवश्ये हैयतनि जीबे करता
विफल तपस्या नहि होइछ ओ जीबि सकल दुख हरता॥

66.
देखब आबि हमहुँ सब तखने दुहुके मंगल वेषे
एहिठाँ आनि विवाह करायब प्रमुदित हयब विशेषे।
ई सुनि कादम्बरी स्वस्थ भय हुनके तनु आराधथि
बनलि तापसी खाथि मूल फल कठिन तपस्या साधथि॥

67.
पन्द्रह बासर बितल कुमरके टुह टुह अंग लगै छल
बदन फुलायल कमलेसन सगरे तनु विभा जगै छल।
कादम्बरी बलाहकके अपनहिं बजबाय कहै छथि
निर्विकार तेजस्वी तनुसँ उरमे आशा दै छथि॥

68.
जउ अहाँ हिनकर जननी जनकहुके धैरज दै लय
मनोरमा शुकनासहुँके सब टा वृत्तान्त कहै लय।
हाथ जोड़ि सेनापति कहलनि स्वामिनि, भल आज्ञा अछि
हिनका एना छोड़ि चल जायब सेहो महावज्ञा अछि॥