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कादम्बरी / पृष्ठ 156 / दामोदर झा

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1.
ऋतु वसन्त भरि भुवन मनोहर नव पल्लव सब गाछ भरल छल
विपिन भूमि नव यौवन पओलक फूलक भार लती नमरल छल।
सरिसो फूलक छपुआ लालेलाल पल्लवक छीट पहिरने
परिधि गाम केर युवती बनि ऐठे छल शिर सोनहूलहिं भरने॥

2.
कमल परागक सौरमसँ डबरा सब अतर जकाँ गमकै छल
मधुकर गणक मरन्द पान लखि विरही केर छाती धमकै छल।
लादल फूल पलाशक तरु सब पजरल आगि जकाँ लहकै छल
कटहर केर मोछक सुगन्ध सँ युवक पथिक केर उर टहकै छल॥

3.
चारू भाग मधूक गाछकेर फूल पसरि महमह महकै छल
सून सेज विरहिनि उठि बैसय भरि निशि कोइली सङ कुहकै छल।
आमक गाछक मज्जरसँ जनु सब पल्लवपर दीप जरै छल
डारि डारि पर कुहकय कोइली विरही केर उर कहर करै दल॥