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कादम्बरी / पृष्ठ 157 / दामोदर झा

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4.
तरु कचनार फूल पट ओढ़ने चहु दिशि लाले लाल करै छल
जन मनमे आमोद बढ़बितो विरहीके बेहाल करै छल।
कली कली पर घुनघुन रव अलि जनु मदनक संगीत रचै छल
पिय वियोगिनी युवती जनकेर मनमे हाहाकार मचै छल॥

5.
लाल गुलाबक फूल फूलपर मधुकर कुल गुंजार करै छल
युव युवती जनतामे नृप मनसिज शासनक प्रचार करै छल।
फूलक वस्त्र पहिरने बेली हँसल नबेली जकाँ लगै छल
अपरुब छटा विपिन लखि मुनिहुक सूतल काम विकार जगै छल॥

6.
सीमर गाछ शिखर सन अपना शिर पर ललका पाग मढ़ै छल
लाल अशोकक तरु पल्लवसँ युवजन मन अनुराग बढ़ै छल।
शीतल मन्द सुगन्धित दक्षिण पवन भुवन वन भरि हहरै दल
विरही जनक देहमे लगिते मलयाचल अहि विष लहरै छल॥

7.
राति नखत सङ आबि कलाधर नव कुमुदाकर नभ गठबै छल
मानवती युवतीके निजकर मारि पीटि पिय घर पठबै छल।
कामदेव धनुसायक धयने जल थल वन उपवन बिहरै छल
ताकि ताकि विरही युव युवती मारय बाण शिकार करै छल॥

8.
सर अच्छोदो भरल कोर धरि मणि सन स्वच्छ सलिल लहरै दल
सगरे कमलक फूल फुलायल सुन्दरताक छटा छहरै छल।
अच्छोदक तट वन परिसरके की भाषब फूलक ढेरी छल
कोकिल मधुकर रव श्रुति फाड़य जनु मनोज भूपक भेरी छल॥