Last modified on 25 अक्टूबर 2013, at 18:23

कादम्बरी / पृष्ठ 29 / दामोदर झा

1.
पहुँचथि जाय प्रधान द्वारपर राजकुमार अश्वसँ उतरथि
सेनापति अगुआय देखाबथि जे प्राचीन-मार्ग ओ बिसरथि।
देखल सभा भवनमे जनकक हर्ष वारि परिपूरित लोचन
भूतल ठेहुन राखि शिरहिसँ तुरत कयल चरणक रज-मोचन॥

2.
आलिंगल राजा बहुकाले शिरपर देलनि नेहक चुम्बन
कोरामे बैसय लय खींचल किन्तु भेला ओ भूतल-मण्डन।
बारहिंबार पीठ कर फेरथि मुखहुँ निहारथि भरि-भरि लोचन
पूछथि हाल-चाल पढ़बाकेर हर्षे करथि नयन-जल मोचन॥

3.
बझलो समाचार पुनि पूछथि सुतक अमृत-सन बोल सुनै लय
तृप्ति न होय तथापि पठओलनि जननी केर घर उत्सव दै लय।
सुतके देखि बिलासवती उठली दुहु थनसँ दूध चुअबिते
शीश चढ़ाओल मातृचरण से ओहो उठओलनि हृदय लगबिते॥