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कादम्बरी / पृष्ठ 35 / दामोदर झा

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29.
इन्द्रायुधपर चढ़ल नगर जन केर आशीष श्रवणसँ सुनिते
प्राची द्वार पुरक बहरयला चन्द्रापीड़ विप्रजन नमिते।
तखन बलाहकसँ परिचायित अगणित चामर छत्र लगओने
भूप सहस्र हिनक अनुसरला उपरा-उपरी भेष बनओने॥

30.
वाम भागमे अश्वतरी पर लगहिं पत्रलेखा छलि चढ़ले
वैशम्पायन दहिन भागमे छला श्वेत घोड़ापर बड़ले।
ताहि दिवस किछुए पथ चलिके साँझ होइत शिप्रा तट गेले
ध्वज-तोरणसँ चित्र बनाओल वसन-भवनमे आश्रय लेले॥

31.
दोसर दिन भिनसरे उठल सब पहिने देहक कृत्य सम्हारल
अपन सबारी चढ़ि-चढ़ि बढ़ले सब दिशि जयजयकार उचारल।
ध्वजा पताका फहरल सेना लैत हिलोर चलय जनु सागर
धरि उड़ा क नभ-पथ छेकल दिनमे आन्हर छला दिवाकर॥

32.
सेना भारे धरती तरमे शेष नाग वमन करै छल
आठो दिग्गज धड़फड़ाय स्वर्गक फाटक सुर बन्द करै छल।
जे राजा निज माथ उठाबथि तनिक माथ भूतल ओ घड़ोओने
चन्द्रापीड़ चलथि आगू चरणानत भूपक राज्य बढ़ओने॥

33.
जे वशमे नहि होथि तनिक वंशहुँके ई जड़ि मूल उखाड़थि
जे उखड़ल शरणागत राजा तकर राज्य भरि झण्डा गाड़थि।
सज्जनके शरणागत रक्षासँ विश्वास बढ़ाय चलै छथि
दुर्जनके मर्दन करते साधारण जनके अभय करै छथि॥