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कादम्बरी / पृष्ठ 38 / दामोदर झा

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44.
भारत केर अवसानोत्तर अछि ई कैलास विशाल महीधर
अपन पीठ एकरा दिशि कयने दक्षिण पहुँचय स्वर्ग-नगरवर।
किन्तु भानु नभ मध्य तपै छथि मन पियास तलफय जल ताकब
इन्दायुधके जल पिआय छाहरिमे कतहु छनहिं तन राखब॥

45.
ई विचारि अज अन्वेषण लय घूमल चहु दिशि दृष्टि घुमायल
तहिखन हाथी-झुण्ड गेल छल थाल कीच रास्तामे पायल।
उनटा ताहि मार्ग अनुसरने हरियर कंच सघन वन देखल
तकरा बीच पैसि सागर सन अति रमणीय सरोवर पेखल।

46.
मणि सन स्वच्छ सलिल भृत भीतर माछ काछु सबटा अवलोकल
छल विशाल दक्षिण तट परसँ उत्तर पार महार न देखल।
छूरहिसँ अवलोकन करिते थकनी सकल दूर भय गेले
हयसँ उतरि ठाढ़ किछु चलितो लता-मण्डपक आश्रय लेले॥

47.
घोड़ा केर सन्नाह उतारल ओ भूतल ओंघड़ाय स्वस्थ भय
चरलक घास पेट भरि सरमे सलिल पीबि पैसल नहाइ लय।
बाहर भय शरीर झटकारल गाछक जड़िमे बान्हल तकरा
छरा लय किछ घासो काटल आगूमे राखल पुनि ओकरा॥

48.
स्वयं नहाय पानि किछु पीलनि खाय उखाड़ि बिसाँढ़क टुकड़ी
सुतला आबि शिलातल शय्या श्रम हँटबैलय गेडुआ लकड़ी।
किछ छन लोट-पोट कय देहक पथश्रमके थकनी निज हरलनि
गीतध्वनि वीणारव मिश्रित उत्तर तीर मनोहर सुनलनि॥