कादम्बरी / पृष्ठ 40 / दामोदर झा
54.
ई सब चिन्ता करितो खाम्हक आश्रय अपन शरीर नुकओने
चन्द्रापीड़ गीत अवसानक करथि प्रतीक्षा घात लगओने।
ओ कन्या संगीत समापल वीणाके राखल भूतलमे
धयंसाष्टांग शरीर भूमिपर शिर राखल शिव चरण कमलमे॥
55.
पुनि उठि चन्द्रापीड़ निकट जा परम प्रसन्न आँखिसँ दैखल
स्वागत पूज्य अतिथि, अपनेके, बड़ निज भाग्य आइ हम लेखल।
एतय आबि विश्राम करू किछु आतिथ्यक फल-मूल ग्रहण कय
अपना घर आयल छी ई बुझि स्वस्थ करू वपुके दयालु भय॥
56.
एतबा कहि कुंजक रस्तासँ तपस्विनी आगू दिशि गेले
देवी जकाँ प्रणाम ताहि कय भक्ति भाव तकरे पथ लेले।
राजकुमर निज भाग्य सराहथि कन्या केर उदार आदरसँ
घोड़ा पकड़ि कतय लय जायत ई गुनि बढ़थि कुतूहल भरसँ॥
57.
आगू जाय गुफामे पैसल जकरा आश्रम छलय बनयने
दण्ड कमण्डलु भस्म कुशाजिन भिक्षा-पात्र जतय छलि धयने।
ततय कुशासन पर बैसा क’ आगू स्वयं मृगाजिन बैसल
चन्द्रापीड़क परिचय निर्जन वनमे भ्रमण प्रयोजन पूछल॥
58.
संक्षेपहिमे नृपकुमार भारतवर्षक उज्जैन जनओलनि
दिग्विजयक प्रसंग किन्नरके पाछ निज आगमन बुझओलनि।
ओ कन्या-वृत्तान्त सकल बुझि अपना आश्रमसँ बहरायल
भिक्षापात्र हाथमे रखने गाछ सभक तरमे मरड़ायल॥