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कादम्बरी / पृष्ठ 46 / दामोदर झा

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19.
ऋतु वसन्त सब फूल फुलायल महमह भुवन करै छल
कोइली कुहकय सब दिशि मधुकर घुन-घुन शब्द भरै छल।
एतय स्वच्छ अच्छोद सरोवरमे नहाइ लय अयलहुँ
माइक संग बहुत सखिओ छलि अपरुब आनन्द पओलहुँ॥

20.
फूलक भार लती नमरल छल गाछक डारि झुकल छल
सखी सभक संग विपिन भ्रमण कय अपरुब शोभा देखल।
एक ठाम सब फूलक सौरभ अपन सुवासें दबने
सूँघल गन्ध अपूर्व मनोहर जकरा आनल पवने॥

21.
कोन प्रसून एकर उद्भव अछि? ई जिज्ञासा जगले
चकित दृष्टि ओ निपुण नासिकासँ अन्वेषय लगले।
किछु छन आगू चलला पर देखल एक तरुण मनोहर
मुनिक वेष छल अम्बुज-लोचन छल कामहुँसँ सुन्दर॥

22.
जनु हरकोपानलसँ पहिने अक्षत अंग मदन हो
बिनु कलंक सोलहो कलासँ पूरल रजनि-रमन हो।
यद्यपि ओ मेखला अजिन बल्कल छल वपु असमंजस
तैओ ताहीसँ दमकै छल रूपक की नहि हो वश।

23.
एक अपूर्व मंजरी फूलक कान उपर रखने छल
जकर मनोहर गन्ध दहो दिशि काननके झपने छल।
लावण्यामृत निर्झर हुनका बिनु पल नयन विलोकल
कौतुक भाव हृदयमे जागल हम ई के नहि देखल॥