कादम्बरी / पृष्ठ 8 / दामोदर झा
34.
नरनायक, अपनेक सुनल अछि ओ विन्ध्याचल जंगल
पश्चिम पूब समुद्रक तट जे परसि करै अछि मंगल।
जकरे एक भाग हाथा गेंड़ा ओ बाघक धामे
दंडक वनमे लछमन संग निबसला सीता-रामे॥
35.
लपामुद्रा पद पवित्र अछि जतय अगस्त्यक आश्रम
शान्त तपस्वी भवबन्धके काटथि जतय बिना श्रम।
तकरे अछि समीप निर्मल जल ‘पम्पा’ नाम सरोवर
कर्णपूर लय सीता अनलनि जकर सरोज निरन्तर॥
36.
तकरे पश्चिम तटपर अछि एक सीमर वृक्ष पुराने
शाखा-भुज पसारि नापय जे सतत दिशा केर माने।
जकरा शिखरक ठोकर डरसँ हँटि नित चलथि दिनेशे
भेने बूढ़ शिरा सब प्रकटित भेल लतागण बेशे॥
37.
तकरा कनहा पर कोटरमें बलक्ल जीर्ण विवरमे
निबसय निर्भय लाखो पक्षी नीड़ बनाय उपरमे।
ओ सब जतय ततय भोजन लय दिन भरि समय बिताबय
निशि भरि अपना खोतामे निर्भय निद्रा सुख पाबय॥
38.
तकरे उपर हमर माता पितु जीवन अपन बितओलनि
एक मात्र सन्तान बुढ़ारीमे हमरा ओ पओलनि।
नहि सहि सकली जननी हमरे प्रसव-वेदना केर दुख
पुत्र अभागलके तजि मरि अपन औलनि अमर भुवन सुख॥
39.
प्रिय पत्नी केर शोक हृदयमे दाबि पिता भय पाथर
हमरे पालन-पोषणमे तत्पर बितबथि निशि-वासर।
धुत्थुर बूढ़ पाँखि हुनकर छल नारिकेल बाढ़नि सम
शाखा सब पर पैदल जाथि, छला उड़बामे अक्षम॥