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कादम्बरी / पृष्ठ 91 / दामोदर झा

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20.
सुनि भयभीत चौंकि हम कहलहुँ देवि, कहै छी की ई बात
फूलहुसँ कोमल अहाँक उर कहिया कयलनि की आघात।
कहलनि कहतो लाज होइत अछि कयलनि जे उद्धत व्यवहार
मात्र अहीके कहब आउ लग हुनकर सबटा अत्याचार॥

21.
कहलनि दुपहरिया निशिमे ओ चोर जकाँ सब दिन घर आबि
सूतै छथि हमरहि पलंगपर हमरा अपना उरमे दाबि।
बल कय मुख अपना दिशि खींचथि हँसि हँसि चूमथि मुख धय घाड़
लाजहुके अवसर नहि दै छथि छबथि करथि उरोज उघाड़॥

22.
हम कुमारि छी लोक कहत की हमरा रहल कतहु नहि ठाम
गेल लोक परलोको गेले सबटा इज्जति भेल उदाम।
सुनिते बिहुँसि तखन हम कहलहुँ देवि न एहिमे हुनकर दोष
नचा रहल छथि काम अहाँके किछ दिन हृदय धरू सन्तोष॥

23.
हुनकर वशीभूत ललनाकेर सबठाँ प्रियतम मुखहिं लखाय
सुनय दहो दिशि हुनके मुखरव सुतलहुँमे ओ देथि रमाय।
सैह मदन उरमे निबसल छथि करथि अहूँक उएह उपचार
दोष कुमारक नहि मन गुनिअनु ओ अहाँक जीवन आधार॥

24.
सुनिते चौकि कहल सत्ये ई सपनामे हुनकर की दोष
किन्तु भार सन जीवन ई अछि सम्बल कोन करब सन्तोष।
एतबा कहि लगले ओ खसली हमरा कोरामे धय माथ
सदिखन तानि तानि शर मारथि कामविरहमे जानि अनाथ॥