भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 97 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

50.
छल शरीर घोड़ाक पीठ पर मन केयूरक संगहि गेल
इन्द्रायुधक मार्ग परिचित छल ई नहि सोचथि मुड़बा लेल।
सेवक आबि पकड़लक घोड़ा तय उतरवा केर छल ठाम
देखल चौकि भवन लग नयलहुँ कहुना उतरि कयल विश्राम॥

51.
राजकुमारक हाल ई क्यो नहि बुझलक आन
प्रजा सकल रंजन करथि किछ छन दय अवधान॥