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कानों में लफ़्ज़ों का कचरा उफ़ मैने कुछ सुना नहीं / विनय कुमार

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कानों में लफ़्ज़ों का कचरा उफ़ मैने कुछ सुना नहीं।
सालों से तू बोल रहा है क्या तूने कुछ कहा नहीं।

हवा पूछती है साँसों से साँस पूछती सीने से
सच को सच कहने वाला क्या सचमुच कोई रहा नहीं।

धूप दुखों की थी हर शय पर तुम आये हो शाम ढ़ले
मुझे पता है, कल बोलोगे-देखा था दुख दिखा नहीं।

लिखता रहता हूँ लेकिन अक्सर यह लगता रहता है
जो अनपढ़ है वे भी पढ़ लें ऐसा तो कुछ लिखा नहीं।