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कान्हा / नीता पोरवाल
Kavita Kosh से
तुम्हारी परछाई
असंख्य रश्मि पुंज सी
मेरी सर्द हुई हथेलियों को
सघन उष्मा देती हुई
तुम्हारी परछाई
पीले हाथो की छाप सी
बेरँग मन की ड्योढ़ी पर
इन्द्रधनुषीय रंग भरती हुई
तुम्हारी परछाई
मुस्कुराती सी
कुछ यूँ फुसफुसाती सी
हूँ तो सही
यहीं
तुम्हारे साथ
हर घड़ी
हाँ
तुम्हारी परछाई का
अहसास भी
मुझे कम तो नहीं