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कान्हा / रचना उनियाल

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कान्हा को माखन मन भाया।
मुख पर माखन मंजुल काया॥

मात जसोदा ओखल बाँधे।
साम -दाम हर भेदो साधे॥
कहे श्याम सुन बातें मोरी।
कितनी मटकी फोरी हो री॥
केशव माता की प्रति छाया।
हिय के नंदन वन में आया॥

कान्हा अँखियाँ अति मतवाली।
प्रेम जगत का है बनमाली॥
टुकुर-टुकुर मैय्या को देखे।
करता बातें आँखें लेखे॥
बोले माता माखन खाया।
रिपु सम तूने किया पराया॥

वासुदेव की लीला न्यारी।
जगती लगती कैसी प्यारी॥
बाल रूप में खेल रचाता।
कर्म करें हर मन प्रण गाता॥
रचे नंद नंदन जब माया।
माधव बाँधे ओखल छाया॥