काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का / शाद अज़ीमाबादी
काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का
जो ये कहते हैं टटोले कोई ईमाँ उन का
जुस्तुजू के लिए निकलेगा जो ख़्वाहाँ उन का
घर बता देगा कोई मर्द-ए-मुसलमाँ उन का
तू ने दीदार का जिन जिन से किया है वादा
हाए रे उन की ख़ुशी हाए रे अरमाँ उन का
अपने मिटने का सबब मैं भी बता दूँ ऐ शौक़
काश छू जाए मिरी ख़ाक से दामाँ उन का
छोड़ कर आए हैं जो सुब्ह-ए-वतन सी शय को
मर्तबा कुछ तो समझ शाम-ए-ग़रीबाँ उन का
जिन की आग़ोश-ए-तसव्वुर में है वो हूर जमाल
कहीं सच हो न यही ख़्वाब-ए-परेशाँ उन का
जो इस उलझाओ के ख़ुद हैं मुतमन्नी दिल से
क्या बिगाड़ेगी तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ उन का
सर में सौदा-ए-ख़िरद पाँव में ज़ंजीर-ए-शुकूक
भेद पाएगा न इस शक्ल में इंसाँ उन का
हम दुआ दें तुझे दिल खोल के ऐ पहलु-ए-तंग
टूट कर सीने में रह जाए जो पैकाँ उन का
चाक करने का है इल्ज़ाम मिरे सर नाहक़
हाथ उन के हैं हम उन के हैं गरेबाँ उन का
वो मिटा क्यूँ नहीं देते मुझे हैरत तो ये है
उन के कहने में है दिल दिल में है अरमाँ उन का
उन शहीदान-ए-मोहब्बत में तौ मैं साफ़ कहूँ
कोई इतना नहीं पकड़े जो गरेबाँ उन का
वही ऐसे हैं कि ख़ामोश सब की सुन कर
सब को दावा है कि हूँ बंदा-ए-फ़रमाँ उन का
पहले हम नीयत-ए-ख़ालीस से वज़ू तो कर लें
ठहर ऐ ख़ाक ठहर पाक है दामाँ उन का
चाहें दोज़ख़ में उतारें कि जगह ख़ुल्द में दें
दख़्ल क्या ग़ैर को घर उन के हैं मेहमाँ उन का
कहीं पैबंद की कोशीश कहीं तदबीर-ए-रफ़ू
जामा-ए-तन से बहुत तंग हैं उर्यां उन का
कीजिए शाना ओ आईना की हालत पे निगाह
सीना-सद-चाक कोई है कोई हैराँ उन का
मान लो पाँव ज़ंजीर भी उतरी लेकिन
भाग कर जाए कहाँ क़ैदी-ए-ज़िंदाँ उन का
जिन शहीदों ने ब-सद-दर्द तड़प कर दी जान
छिन गया हाथ से जीता हुआ मैदाँ उन का
हम तो क्या चीज़ हैं जिबरील तो जा लें उन तक
रोक लेता है फ़रिश्तों को भी दरबाँ उन का
मस्त जाते हैं ख़राबात से मस्जिद की तरफ़
राह पुर-शोर है अल्लाह निगह-बाँ उन का
हम शब-ए-हिज्र के जागे न क़यामत में उठें
जब तलक ख़्वाब से चौंकाए न अरमाँ उन का
वहम तू ही ख़लल-अदांज़ हुआ है वर्ना
कौन जूया नहीं ऐ रहज़न-ए-ईमाँ उन का
दिन क़यामत का ढला सब ने मुरादें पाईं
रह गया देख के मुँह ताब-ए-फ़रमाँ उन का
मरने वालों का अगर साथ दिया पूरा कर
ले जनाज़ा भी उठा हसरत ओ अरमाँ उन का
हक़ जताते हैं शहीदान-ए-मोहब्बत बेकार
क्या ये मरना था बड़ा कार-ए-नुमायाँ उन का
‘शाद’ घबरा गया इक उम्र से जीते जीते
वो बुला लें मुझे इस वक़्त तो एहसाँ उन का