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कामनाएँ / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
दौड़ती रहें किरणें अनन्त पथ पर
गुजरते रहें प्रकाश वर्ष
फैलता रहे ब्रह्माण्ड
महाकाश महाकाल में
किलकती रहें नीहारिकाएँ
नहाते रहें ग्रह नक्षत्र
आकाश गंगाओं में
बहती रहें हवाएँ
बरसते रहें मेघ
पूरी हों, हों
न हों
प्रभु!
लहलहाती रहें कामनाएँ!