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कामनाओं का दमन करना पड़ा / जतिंदर शारदा

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कामनाओं का दमन करना पड़ा
आंसुओं का आचमन करना पड़ा

फूल बनकर क्या मिला उपहार में
शूल शैय्या पर शयन करना पड़ा

मनुज ताकि चांद तारे छू सके
दैव को नीचे गगन करना पड़ा

वासनाओं में उलझ कर नुहुष को
अमर लोकों से पतन करना पड़ा

संघर्ष से आस्था जाती रही
मनुज को प्रायः भजन करना पड़ा

पुस्तकों के पठन से होकर निराश
अपने मन का ही मनन करना पड़ा

वर्जनाएँ तोड़ कर मर्याद की
अपने मन का अनुसरण करना पड़ा

कंटकों की वेदना का शमन कर
अपने मन को ही सुमन करना पड़ा

ढूँढने निकले थे हम हृदयेश को
सकल त्रिभुवन में भ्रमण करना पड़ा

पाप की सत्ता मिटाने के लिए
पुण्य को ही अवतरण करना पड़ा