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कामयाबी के भरोसे गिन रहा हूँ / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

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कामयाबी के भरोसे गिन रहा हूँ
आसमाँ के सब सितारे गिन रहा हूँ

पावं से अपने मसल कर फ़ूल को अब
घाव तलवों के मैं ,अपने गिन रहा हूँ

वो गवाही देगा मेरे पक्ष में ही
और भी अहसाँ हैं उसके गिन रहा हूँ

फ़ासला है दरमियाँ में बेरुखी का
मैं तुम्हारे सब इशारे गिन रहा हूँ

भीड़ में "आज़र" कहाँ गुम हो गए हो
लौटने के दिन तुम्हारे गिन रहा हूँ