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कामाशक्ति सेॅ विनाश / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

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हिरण्यकशिपु केरोॅ वंशोॅ मेॅ निकुम केॅ दू पुत्रा छेलै
सुन्दर, उपसुन्दर दोनोॅ पराक्रमी छेलै ।

दोनोॅ सहोदर भाय छेलै
आपनोॅ मेॅ दोनोॅ मुखिया छेलै ।

दोनोॅ मेॅ घनघोर प्रेम छेलै
एक प्राण दू शरीर छेलै ।

दोनोॅ रोॅ भाव-विचार समान छेलै
कर्म-धर्म समान छेलै ।

खान-पान, उठना-बैठना साथे होय छेलै
दोनोॅ अमर बनै वास्तें तपस्या में भिड़ी गेलै ।

विन्ध्याचल पर जाय केॅ रहेॅ लागलै
शरीरोॅ पर मिट्टी रोॅ ढेर होय गेलै ।

शरीरोॅ रोॅ मांस काटी केॅ हवन करेॅ लागलै
शरीरोॅ पर खाली अस्थि रही गेलै ।

दोनोॅ हाथ ऊपर उठाय लेनें छेलै
गोड़ोॅ रोॅ अंगूठा बलोॅ पर खड़ा होय गेलै ।

घोर तपस्या मेॅ भिड़ी गेलोॅ छेलै
दीर्घकाल तक तपस्या मेॅ डटलोॅ छेलै ।

तपस्या रोॅ ताप सेॅ विन्ध्याचल तप्त छेलै
देवता नेॅ दोनोॅ रोॅ तपस्या पर विघ्न डालै छेलै ।

सब तरह सेॅ प्रलोभन, भय, छल व्यर्थ होय छेलै
आखिर मेॅ संतुष्ट होय केॅ ब्रह्मा जी पधारलै ।

ब्रह्मा जी दोनोॅ केॅ वरदान माँगै लेॅ कहलकै
मायावी सब्भेॅ अस्त्रोॅ रोॅ ज्ञाता बनै लेॅ चाहलकै ।

ब्रह्मा जी नेॅ होकरा अमर बनाय पर स्वीकार नै करलकै
आपनें हमरा अमरत्व नै करै लेॅ चाहलकै ।

हमरा दोनोॅ केॅ कोय पराजित नै करै पारै छै
लाख कोशिश रोॅ बाद हरावै नै पारै छै ।

अगर हमरा दोनोॅ रोॅ मृत्यु होय जाय
तेॅ एक दोसरा के हाथोॅ सेॅ होय जाय ।

ब्रह्मा जी होकरा पर एवमस्तु कहलकै
दोनोॅ आपने केॅ अहोभाग्य समझलै ।

ब्रह्मा जी वरदान दै केॅ आपनोॅ लोक चललोॅ गेलै
वरदान पावी केॅ फूली केॅ कुप्पा होय गेलै ।

वरदान पावी केॅ गर्वो सेॅ चूर हुवेॅ लागलै
देवता होकरा सेॅ युद्ध करै सेॅ कतरावेॅ लागलै ।

दैत्योॅ रोॅ आक्रमण सुनी केॅ देवता रोॅ पत्तर सटकलै
देवता स्वर्ग छोड़ी केॅ जाही-तांही भागै लागलै ।

यक्ष, राक्षस, नाग सब्भै केॅ जीतलकै
त्रिलोकी विजय रोॅ सब्भै केॅ आज्ञा देलकै ।

कोय यज्ञ पूजन वेदाध्ययन नै करे पारै छै
जहाँ पर है सब्भे रहै छै, हौ जगह नष्ट करे छै ।

ऋषि-मुनि केॅ खोजी-खोजी केॅ मारे छै
ऋषि-मुनि जान बचाय लेॅ जाहीं-ताही भागै छै ।

क्रूर दैत्य आज्ञा पावी केॅ ब्राह्मणोॅ रोॅ वध करे लागै छै
ऋषि-मुनि रोॅ आश्रम जलावेॅ लागे छै ।

जे सब ऋषि नेॅ दोनोॅ केॅ श्राप दै छेलै
ब्रह्मा जी रोॅ वरदानोॅ सेॅ व्यर्थ चललोॅ जाय छेलै ।

पृथ्वी पर तपस्वी वेदपाठ, जितेन्दिी ब्राह्मण छेलै
धर्मात्मा ऋषि सब्भे भय सेॅ गुफा मेॅ छिपलोॅ छेलै ।

क्रूर सिंह, व्याघ्र स्र्वरूप धरनें छेलै
गुफा मेॅ डूबी केॅ नष्ट करै लागलै ।

ऋषिगण ब्रह्मलोक ब्रह्मा जी रोॅ पास गेलै
देवता सब्भेॅ हुनका समीप दुखड़ा सुनैनें छेलै ।

देवता रोॅ विपत्ति सुनी केॅ ब्रह्मा विचार करलकै
विश्वकर्मा केॅ बुलाय केॅ एक सुन्दर नारी रोॅ निर्माण करलकै ।

विश्वकर्मा जग रोॅ सार भाग सेॅ नारी बनैलकै
नारी रोॅ विश्व सुन्दरी श्रेष्ठ आकर्षक रूप बनैलकै ।

देवता लोकपाल सब्भे हिनका देखी केॅ मोहित होलै
ब्रह्मा जी नेॅ हिनकोॅ नाम तिलोत्मा राखनें छेलै ।

तिलोत्मा हाथ जोड़ी केॅ ब्रह्मा जी सेॅ पूछलकै
सुन्दर, उपसुन्दर रोॅ समीप जाय लेॅ कहलकै ।

दोनोॅ अनुचरोॅ केरोॅ साथ उपवनोॅ मेॅ विचरन करै छेलै
वहाँ पर माँगै पर सब्भे सामग्री उपलब्ध छेलै ।

दोनोॅ मदिरा पीबी केॅ उच्चोॅ आसनोॅ पर बैठलोॅ छेलै
नर्तकी नृत्य करी केॅ दोनोॅ केॅ रिझाय रहलोॅ छेलै ।

गायक नाना प्रकार रोॅ बाजा बजावै छेलै
कत्तेॅ लोग दोनोॅ रोॅ स्तुति देखी रहलोॅ छेलै ।

तिलोत्मा नदी रोॅ किनारे-किनारे फूल चुनने गेलोॅ छेलै
हिनका पर दोनोॅ रोॅ दृष्टि अचानक पड़ी गेलै ।

दोनोॅ हिनका पर आसक्त होय गेलै
कामासक्त भाव दोनोॅ मेॅ आबी गेलै ।

एक भाय दाहिना हाथ, दोसरोॅ बायाँ हाथ पकड़लकै
तिलोत्मा सेॅ दोनोॅ अनुनय-विनय करलकै ।

आपनोॅ आपनोॅ पत्नी बनाय लेॅ चाहलकै
तिलोत्मा दोनोॅ केॅ देखी केॅ मुस्कुरैलकै ।

आपने दोनोॅ निर्णय करोॅ एक नेॅ पत्नी बनाय लेॅ
आसक्ति रोॅ चलते दोनोॅ सौहार्द्र भूली गेलै ।

स्वार्थ रोॅ वशीभूत होय केॅ अलग विचार होलै
एक तिलोत्मा केॅ दोनोॅ पत्नी बनाय लेॅ चाहै छेलै ।

मदिरा का नशा, कामदेव ने अंधा बनेलकै
सुन्दर नेॅ उपसुन्दर केॅ कहलकै ।

है नारी हमरोॅ पत्नी छेकै
तोरा लेली है माता रोॅ समान छै ।

उपसुन्दर केॅ विचार हटाय लेॅ कहे छै
उपसुन्दर नेॅ कहलकै है हमरोॅ पत्नी छेकै ।

तोरा लेली है पुत्रा-वधु रोॅ समान छेकै
दोनोॅ भाय कामातुर होय केॅ भिड़ी गेलै ।

दोनोॅ आपनोॅ हाथोॅ में गदा लै केॅ तैयार होलै
एक दूसरा पर प्रहार करै लागलै ।

परस्पर आघात सेॅ तन खंड-खंड होलै
खूनोॅ रोॅ नदी बहेॅ लागलोॅ छेलै ।

दोनोॅ आपनें मेॅ लड़ी केॅ टुकड़ा-टुकड़ा होय गेलै
कामातुर होय केॅ आपनें मेॅ दोनोॅ मरलै ।

नारी मदांधोॅ मेॅ दोनोॅ नष्ट होय गेलै
तिलोत्मा नेॅ आपनोॅ कार्य पूरा करलकै ।

ब्रह्मा नेॅ तिलोत्मा केॅ स्वर्ग रोॅ श्रेष्ठ अप्सरा बनैलकै
सौंसे दुःख केॅ हारलकै ।