भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कामों क्रोधो के काटों कान / छोटे लाल मंडल
Kavita Kosh से
कामों क्रोधो के काटों कान,
लोभो मोड़ो के तोड़ो जांघ,
हंकारो के गरदन मरोड़ों
राम नाम रस पियौ भांग।
तीन गुणां तीन ताप चढ़ल छौ
झरकावै छै अंगे अंग,
रामवाण गुरू मंत्र हमारौ
भालू सेर चिता सव दंग।
गीदड़ो माकरौ के की छै ठिकानों,
की हिसंक की चोर चुहार,
दृढ़ता पुर्वक गुरू के युक्ति,
भव भय भारी करैं पछार।
रात अन्हारी झपटा मारै
दीया वारि देखै संसार,
की काल करालें पटका मारैं
जव हिरदांमें जोति उजियार।
तन के अन्दर मन छै शत्रु
चाहै विषय रस चाखों मैं
तोंय नै देभौ तूफान करै छै,
गर्दन छौ मलकाठों में।