लड़ाई बंद हो गई है
युद्ध का एक अध्याय
समाप्त हो गया है
जवान रुक गए हैं
जहाँ थे वहाँ विराम लग गए हैं
मैदान छोड़कर भाग गए हैं
प्रधानमंत्री का आदेश
-समर्पण का नहीं-
संपूर्ण सम्मान के साथ
शक्ति और शील का आदेश है
वह आदेश
जवानों की जय का आदेश है
नय और विनय का वह आदेश
स्वदेश के नय और विनय का आदेश है
युद्ध के सैनिक
अब शांति के सजग प्रहरी हैं
जो जहाँ है
और साहस से वहाँ खड़े हैं
तब तक न हटने के लिए
जब तक आतंक पलायन न कर जाय
और सुबह की धूप
फिर न हँसने लग जाय
घायल दिन
स्वस्थ और चंगा न हो जाय
सीमा का अतिक्रमण
असंभव न हो जाय।
कायरों का नहीं-वीरों का भारत
शांति का सशक्त मोरचा बन गया है
गरुणगामी वायुयानों का
दिग्गज टैंकों का
आग उगलती बंदूकों का
अमोघ शस्त्रास्त्रों का।
यह मोरचा भी
शत्रु की मृत्यु का मोरचा है
अखंड भारत के
अखंड विश्वास का मोरचा है।
न टूटने वाला यह मोरचा
शांति के पर्व का
रक्त और हृदय के कमल का
भारतीय संस्कृति के मेरुदंड का,
जय और विजय का
अनुपम मोरचा है।
रचनाकाल: २५-०९-१९६५