कारोबार / निर्मला गर्ग
   
अग्रवाल  जी का कानपुर  में खाद बेचने का व्यापार है
श्रीमती  अग्रवाल रोज़ाना सुबह तीन घंटे
पूजा-पाठ में व्यतीत करती हैं  
अग्रवाल  जी खाद में अलाँ-फलाँ मिलाते हैं
अभी तक तो पकड़े नहीं गए अलबत्ता मौके कई बार बने
श्रीमती  अग्रवाल समझती हैं कि यह सब उनके
धार्मिक कर्मकांडों का फल है  
हर साल जुलाई  के मौसम में अग्रवाल  जी दिल्ली आते हैं
(जुलाई व्यापार के लिए आम तौर पर ऑफ़ सीजन मानी जाती है )  
अफ़सर को रिश्वत पहुँचानी है
श्रीमती  अग्रवाल  भी साथ आती हैं
रात की गाड़ी से दोनों राजस्थान जाते हैं 
वहाँ इनके कुल-देवता हैं
उनके दर्शन ज़रूरी हैं ख़ासकर ऐसे अनुष्ठानों के बाद
भोग-प्रसाद में लड्डू चूरमा चढ़ाते हैं
शुद्ध घी में बना
प्रसाद वाकई स्वादिष्ट होता है
मेरे घर भी भिजवाते हैं  
श्रीमती  अग्रवाल  कह रही थीं इस बार 
किताब छपने पर 
पहली प्रति मैं 
हनुमान जी को चढ़ाऊँ  
किताब तो खूब बिकेगी ही
प्रकाशक भी पचा न पाएगा रॉयल्टी  
                   
रचनाकाल : 1998
 
	
	

