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कार्तिक / नंद चतुर्वेदी

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लौट आई हैं
कार्तिक की दूध नहाई रातें
घर-पिछवाडे
दूध पीकर
दुबके हुए हैं मां के पास मेमने
भय रहित
धीरे से आता है तेंदुआ
चोर की तरह दुबकता हुआ
गद्दीदार पैर रखता
हिंसा की चमचमाती आंखों से
चारों तरफ रखता
दिग्विजयी सुल्तान
रेड अलर्ट, सायरन
कर्फ्यू, धारा एक सौ चवालीस
कुछ भी नहीं पहले या बाद में
भेडों का शोकार्त स्वर
दिगंत तक जाकर लौट आता है
सुबह पूछते हैं लोग
गडरिए से
क्या हुआ था रात को
बहुत बार आवाज दी थी भेडों ने
गडरिए मेमने गिनता है
दो कम
तेंदुए के पंजे अंकित हैं
निर्जीव लेटी मेडें ही
इस शोकांतिका की साक्षी हैं
जो खामोश हैं।