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कालान्तर / फ़्रेडरिक होल्डरलिन
Kavita Kosh से
कैशोर्य के उन दिनों में मैं
सुबह की ख़ुशियों से भर जाता था,
पर शामों में रुदन ही रुदन था ;
अब, जबकि मैं बूढ़ा हूँ
हर दिन उगता है
शंकाओं से आच्छन्न, तो भी
इसकी सन्ध्याएँ पावन हैं,
शान्त और प्रसन्न ।