इन ईंटों के 
ठीक बीच में पड़ी 
यह काली मिट्टी नहीं 
राख है चूल्हे की 
जो चेतन थी कभी 
चूल्हे पर 
खदबद पकता था 
खीचड़ा 
कुछ हाथ थे 
जो परोसते थे। 
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा
 
इन ईंटों के 
ठीक बीच में पड़ी 
यह काली मिट्टी नहीं 
राख है चूल्हे की 
जो चेतन थी कभी 
चूल्हे पर 
खदबद पकता था 
खीचड़ा 
कुछ हाथ थे 
जो परोसते थे। 
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा