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काली आग / हरभजन सिंह / गगन गिल

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यह काली आग का दरिया
मेरे घर आ बैठा है

ले आया है अपने साथ बहाकर
चटखे हुए पर्वत की फाँकें
कतरे हुए सूरज की कतरनें
काली पुरानी मिट्टी का
आग के जंगल में से गुज़रा एक काफ़िला

जलता सुलगता
चीख़ता चिंघाड़ता
बैठ गया है मेरी दहलीज़ों पर आकर ।

पंजाबी से अनुवाद : गगन गिल