भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काली के अवइत, गुनिया के जाइत / भोजपुरी
Kavita Kosh से
काली के अवइत, गुनिया के जाइत, बीचे रहिया में भइ गइले भेंट।
कहु-कहु काली देवी कुशल आपन, कहु काली शहर के हाल।।१।।
हमरे देस कुशल गुनी भइया, कुशल चाहिले तोहरा।
तोहरे नगरिया गुनिया, लरिका हरहुनियाँ, ढ़ेंका फेंकी लिहले पराने।।२।।
एक ढ़ेंका निजवलीं, दुई ढ़ेंका निजवलीं, तीनी भइलीं कोपमाने।
सोने के बढ़निया साजी काली देविया मारे, शहर में पड़ले झोंकास।।३।।
एतना बचन जब सुनले गुनी भइया, चलीं काली शहर गोहार।।४।।
इहवाँ से साई उठि चलि भइले काली देवी, गुनिया के आँगन भइले ठार।
सोने के बढ़निया साजी काली देविया मारे, छूटी गइले शहर झोंकास।
बाजी गइले आनन्द बघाव।।५।।