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काल-चक्र / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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चोरक गाल तर पान पचीश
कर्मठ भाग जनेरक शीश
पारि चिरचिरी चेक भजाबै
कारी आखर बुझै महीष
तकर छाँह तर बुद्धि विशारद
फुदकि-फुदकि गठरी पंजिआबै
गणक तंत्र नहि "काल-चक्र" ई
संत एहि ठाम नोर चुआबै
आना-छिद्दी झरल पल्ला सं
परम पिचाश प्रतिशत चाही
कोंचा सं ढेंका बढ़ि रहलै
बहकल लूटा रहल बाहबाही
शोणित सुखा अन्न उपजाबय
तकरा लेल खुद्दी बड़ भारी
अंचल मे जे दलाली करतै
ओकरा पात भरल तरकारी
ककरा' ककरा' दोख दिऔ औ
जकरा चुनलहुँ सेअह गहीर
बिनु कानक से संगम सुनतै
चिंतनशील आब भेल बहीर
बूढ़-पुरान बकलेल कहाबै
सहसह कपूत हुरदंग मंचाबै
बेसुराह छालही बनि पसरल
पंचम सुर केँ नांच नचाबै
अर्थनीति केर प्रबल पाश मे
स'भ बुझै अपना केँ बीस
मर्यादा केँ चोन्ह अबै छन्हि
भरल ईमान केँ उठलैन्हि टीस
जाति-धर्मक धार मे भसि क'
सम्बल सबल समाज बनौलक
जकरा जतेक पूंजी केर धाही
वैह स्वार्थक लेल सत्य जरौलक
आर्य भूमि मे देव बसै छथि
कोना एखन धरि बाँचल देश?
जकर चरण रज माँथ लगाबी
वैह धेने बहुरुपिया वेश