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काल-सिन्धू का लहर-विकम्पन / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

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काल-सिन्धु का लहर-विकम्पन,
ऊर्ध्व-अंधः का बना आयतन।

उदय-सान्ध्यवेला प्रवाह खर,
वर्ष बने आवर्त्त भयंकर,
करते लोल लहर सम उठकर,
मास-पक्ष नर्त्तन।

लुढ़क रहे अणु-महत निरन्तर,
पूरब-पश्चिम, दक्षिण-उत्तर,
कलासर्गकर काल-अक्ष पर,
बाल्य, जरा, यौवन।

सर्ग-प्रलय के सन्धि-बिन्दु पर,
मूर्त्त काल के निशि-दिन रच कर,
दिया भुवन को जीवन से भर,
एक अयन नूतन।

रूप-रूप में प्राण तरंगित,
ग्रह-गण काल-तन्त्र से कीलित,
वृहत सौरमण्डल में ज्योतित,
करते अक्ष-भ्रमण।

(6 दिसम्बर, 1973)