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काल की तेज़ धारा से कट कर कटी / विनोद तिवारी
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काल की तेज़ धारा से कट कर कटी
उम्र बस लम्हों -लम्हों में बँट कर कटी
कामना कल्पनाओं का विस्तार थी
क्षीण संभावना में सिमट कट कर कटी
कितने सपने संजोए हुए रात थी
रात की नींद लेकिन उचट कर कटी
खिलखिलाता हुआ सिर्फ़ तूफ़ान था
कश्तियों की कहानी उचट कर कटी
प्राय: सब एक ढर्रे पे चल कर जीए
अपनी तो लीक से थोड़ा हट कर कटी
अंत जब भी हुआ बस अचानक हुआ
ज़िन्दगी मौत के साथ सट कर कटी