काल / उमेश भारती
काल अनुभूत
आरो अखंड सत्ता होय छै।
काल केॅ हम्में देखेॅ नैं सकौं
अनुभव करै छियै
काल सतत गतिशील छै
काल आपन्है में गति छिकै।
शिव के डमरू ही तेॅ
काल रोॅ प्रतीक छिकै
कैन्हेंकि ध्वनि-गति
डमरुवे सें तेॅ निकलै छै।
आवोॅ हमरासिनीं स्वागत करौं काल के
ऊ हमरोॅ अतिथि छिकै
मित्र छिकै।
काल शब्दातीत छै
काल कालजयी छै।
‘काल बड़ोॅ छै आकि कर्म?’
पूछलकै कोय दार्शनिकें
उत्तर ओतनैं आसान छै
काल,
कर्मवीर केॅ नैं छलेॅ सकेॅ
ओकरोॅ सामरथ बड़ोॅ छै काल सें
काल नियतियो छेकै
काल ही तेॅ ऐलोॅ छै
डरोॅ नैं!
ऊ तोरोॅ सहयोगी छेकौं
ऊ तोरोॅ भविष्य छेकौं
ऊ वर्तमान छिकै
भूतो।
‘की काल ईश्वर छेकै?’
जाग्रत काल ईश्वर छिकै
काल में जागृति छै
काल संवेदनशील होय छै
काल आदमी लेली स्वीकारै योग्य
आरो ग्रहण लायक छै।
काल के अप्रतिहत गति साथें
गोड़ मिलाय केॅ
चलन्हैं कर्मवीरता छिकै
तबेॅ कर्मवीर
काल के पर्यायवाची होय जाय छैं
आवोॅ
हमरासिनो काल के पूजन करौं
अभ्यर्थंना करौं
कि वें हमरोॅ मंगल करेॅ!
कैन्हें कि, काल सर्वशक्तिमान छै!