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काल / सुनीता जैन
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तुम यदि तिनका हो
तो पर्याप्त हो,
क्योंकि मुझे डूबना नहीं है अभी
कह सकते हो इसे हठधर्मी
हाँ, हठ तो है, मेरा यह हठ कि मुझे
जीना है-
घंटे, दिन, महीनों और वर्षों में नहीं-
ऐसा जीना तो हो ही रहा है आजकल भी,
और काल से बच गए काल को
जीता कौन नहीं,
पर मुझे जीना है
कुछ अलग, कहीं और,
उस मधु प्रदेश में
जहाँ प्रत्येक सुगन्धित वृक्ष अपने दुर्लभ वक्ष पर
सुलाये हो भले ऐसे विषधर
जिनके काटे का कोई काट नहीं;
किन्तु मुझे जाना है वहीं
क्योंकि उन्हीं पत्तों में है वह आँख
जो देखती है आर-पार,
उन्हीं फूलों में वह स्मृति, जो जाती है
समय के बाद समय को उलाँघती,
उसी कोटर में वह हृदय है
जिसके स्पन्दन में बजता
बार-बार ऊर्जा का तार
यही
वह सब है जो
जीना है अभी