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काळ! / कन्हैया लाल सेठिया
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अबकाळै
समदर
भरणै वासतै
आभै रो सोड़ियो
रूई रा बादळ
इंयां ही
पड़्यो है
बापड़ो उखराणौ,
देख’र
धणी री
अबखाई
नाखै निसासां
धण धरती,
कैवै
भोळा लोग
समदर रै
चेताचूक पणै नै
काळ !