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काळी जरड़ी जाजम / ओम पुरोहित ‘कागद’

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सोनळिया धोरां
पसरी है सड़क
किणीं कुमाणस
बिछाय दी जाणैं
मखमल माथै
मिनख भखणीं
काळी जरड़ी जाजम
जिकी लागै
बेकळा नै अणखावणीं
आवै बेकळा
उड-उड घड़ी-घड़ी
इण नै ढकण सारू!