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काळ / कन्हैया लाल सेठिया

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कोनी
चुरा सकै कोई
बगत री
आंख
बीं री निजर में
सगळा पग‘र पांख,
बो ही बैठो गूंगै
बीज में
हंसतै फूल में
रूस्योड़ै कांटै में,
कोनी बीं रै वासतै
कोई डूंगर ऊंचो
कोई समदर गैरो
बीं रै ही
अलख हाथां में
सिस्टी री सांढ री मूरी
कोनी सूणीजै
बंतल करता बटाऊड़ा नै
बीं री टिचकारी !