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काशी मे बरुआ पुकारे, हाथ जनेउआ लेल हे / अंगिका लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
ब्रह्मचारी काशी में अपने उपनयन-संस्कार के लिए पुकार लगा रहा है। उसे पंडित जनेऊ देने का आश्वासन देते हैं, साथ ही यह भी कह देते हैं कि जिन्हें जनेऊ लेना है, वे गंगा पार करके आ जायें।
काशी में बरुआ पुकारे, हाथ जनेउआ लेल हे।
कासी में छै कोइ पंडित, बरुआ जनेउआ दिय हे॥1॥
कासी के पंडित कवन पंडित, हुनि<ref>वे; उन्होंने</ref> उठि बोलै हे।
हमहिं छेकाँ<ref>हम हैं</ref> कासी केर पंडित, बरुअ के जनेउआ देबऽ हे॥2॥
जिनका जनेउआ केर काज, गँगा होलि आयत हे॥3॥
शब्दार्थ
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