भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काशी / नज़ीर बनारसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उठ सकेगा न एहसाँ तुम्हारा
हमको दुनिया से उठना गवारा

दिल की क़िस्मत मंं था चोट खाना
आपने कौन सा तीर मारा

देख दीवानगी का मुक़द्दर
हाथ उनका है दामन हमारा

ज़िन्दगी का नहीं कुछ ठिकाना
चलिए देख आयें उनको दोबारा

जब हिली फूल की कोई डाली
हमने समझा इशारा तुम्हारा

आये ऐसे भी झोंके हवा के
हमने समझा कि तुमने पुकारा

काशी नगरी ’नजीर’ अपनी नगरी
बुत के हम और हर बुत हमारा

शब्दार्थ
<references/>