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कासी मे ठाढ़ बरुआ, जनेउबा बोलै हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ब्रह्मचारी विभिन्न देवस्थानों तथा अपने घर के लोगों के पास जाकर सबसे जनेऊ कर देने का अनुरोध करता है। सभी अपने को अपने स्थान का स्वामी घोषित करते हैं तथा उसका जनेऊ कर देने का आश्वासन देते हैं।

कासी में ठाढ़ बरुआ, जनेउबा बोलै हे।
केउ न कासी जी के मालिक, जनेउबा देता हे॥1॥
कासी जी के मालिक, बिसनाथ जी बोलै हे।
हमहिं छिकें कासी जी के मालिक, जनेउबा देबौ हे॥2॥
बैजनाथ में ठाढ़ बरुआ, जनेउबा बोलै हे।
केउ न छथिन बैजनाथ के मालिक, जनेउबा देता हे॥3॥
बैजनाथ के मालिक बाबा भोला, वोहो उठि बोलै हे।
हमें छिकें बैजनाथ के मालिक, हमहिं जनेउबा देबौ हे॥4॥
अजोधा में ठाढ़ भेल, बरुअबा बौलै हे।
केउ नहीं अजोधा के मालिक, जनेउबा हमरा देथिन हे॥5॥
अजोधा के राजा दसरथजी, वोहो उठि बोलै हे।
हमहूँ छिकें अजोधा के मालिक, हमहिं जनेउबा देबौ हे॥6॥
मड़बा पर ठाढ़ भेल बरुअबा, जनेउबा जनेउबा बोलै हे।
केउ नहीं मड़बा के मालिक, हमरा के जनेउबा देथिन हे॥7॥
मड़बा के मालिक दुलरैतै बाबा, वोहो उठि बोलै हे।
हमहूँ त छिकें मड़बा के मालिक, हमहिं जनेउबा तोरा देबौ हे॥8॥
अँगना में ठाढ़ भेल बरुअबा, भीखैना<ref>भीख</ref> भीखैना बोलै हे।
केउ नहीं आँगना के मालिक, भिखैना नहीं देथिन हे॥9॥
अँगना के मालिक दुलरैते अम्माँ, वोहो उठि बोलै हे।
हमहूँ त छिकें अँगना के मालिक, हमहिं भीखैना तोरा देबौ हे॥10॥

शब्दार्थ
<references/>