राग बड़हंस, कहरवा 16.7.1974
काहू की नजरिया लागी री!
रोवत मेरो लाल भोरसों, मैं पचि हारी री!॥
रहत न पलना में कनिया में, नयनन वारी री!
कैसे हूँ न चुपात, करूँ का, बहुत दुखारी री!॥1॥
पियत न पय, नहिं लेत खिलौना, टोना डारी री!
राई-नौन कियो, न भयो कछु, का बीमारी री!॥2॥
मेरो जीवन धन यह कनुआँ रहे सुखारी री!
यही एक विधना सों विनती बारंबारी री!॥3॥