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कितना अच्छा हो ! / किरण मिश्रा

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कितना अच्छा हो
मन के रेगिस्तान को
कोई फूलों के गीत सुनाए

थके हुए
इन पग को
कोई शीतल जल
धो जाए

पतझर वसन्त में
अटकी दुनिया की
कोई गाँठ खोल जाए

कितना अच्छा हो
कोई निराला मिल जाए
और वो फिर से
वसन्त अग्रदूत बन जाए