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कितना कोमल, कितना वत्सल / गोपाल सिंह नेपाली

कितना कोमल,
कितना वत्सल,

रे ! जननी का
वह अंतस्तल,

जिसका यह शीतल
करुणा जल,

बहता रहता
युग-युग अविरल