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कितना धीमे चल रहे हैं घोड़े / ओसिप मंदेलश्ताम

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कितना धीमे

चल रहे हैं घोड़े

लालटेन की रोशनी कितनी कम है

शायद ये अजनबी

जानते हैं ये बात

कहाँ ले जा रहे हैं मुझे वे इस रात


मेरी चिन्ता

अब उनको ही करनी है

मुझे तो नींद आ रही है

मैं सोना चाहता हूँ

शायद पहुँच गया हूँ उस मोड़ पर

जहाँ बन जाऊंगा मैं किसी तारे की रोशनी


सिर मेरा गर्म है

चक्कर आ रहे हैं

कोई अजनबी कोमल हाथ

मुझे छू रहा है

दिखाई दे रहे हैं मुझे

फर-वृक्षों के काले आकार

जिन्हें पहले नहीं देखा कभी मैंने

ऎसे कुछ धुंधले उभार


(रचनाकाल : 1911)