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कितना हसीन चाँद था, बादल निगल गया / अजय अज्ञात
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कितना हसीन चाँद था, बादल निगल गया
दे कर लबों को तिश्नगी, सावन निकल गया
मुश्किल नहीं था वक़्त की जुल्फ़ें ़ सँवारना
तक़दीर की बिसात का पासा बदल गया
जो भी ख़िलाफ़ थे मेरे, सब साथ हो लिए
शीरीं ज़बाँ का इस तरह जादू-सा चल गया
क़ाबू में रख नहीं सका, जज़्बात देर तक
होते ही उनसे सामना, ये दिल मचल गया
फिसलन बहुत थी दोस्तो उल्फ़त की राह में
अच्छा हुआ जो गिरने से पहले संभल गया