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कितनी नकारा-सी भूमिका है मेरी / चंद्र रेखा ढडवाल



भय मुझे अब भी औरों से नहीं
अपने से ही हुआ
अपने को मैं औरों से अधिक जानती हूँ
चुराए हुए कलम से
भगवान का नाम लिखा सबसे पहले
और विशुद्ध अद्वैतवादी होकर
कर्त्ता को सौम्य दिया योगक्षेम
निश्चिंत होते ही भोग लेना चाहा
किसी भी ओर से आता/किसी के भी हिस्से का सुख
हरी दूब पर बिखरे पड़े दानों को चुगती
फ़ाख़्ताएँ देखता रहा बाज़
वीतरागी सन्यासी की तरह
पर समय तो चलता है अभीष्ट अंत की ओर
जिसपर पहुँचते फ़ाख़्ताएँ अतीत हो गईं
घिनौने कुकृत्य पर बिफरते अचानक
मैं असीम करुणा भीग गई
किसी को भी दुख न देने की
घृणा न करने की इच्छा से प्रेरित हो
मैंने क्षमाकर दिया
(यहाँ कर्त्ता होना सुविधाजनक है)
रहने/नहीं रहने
दोनों ही स्थितियों की
परिणति एक है
उसे तो वंचित होना ही था
इन्हें नहीं रहना भी
अब नहीं तो कुछ देर बाद
करने/कराने की इस सारी तामझाम में
कितनी नकारा-सी भूमिका है मेरी
और इतनी चिंता...
मैंने पट्टाक्षेप कर दिया
दर्शकों की पहुँच सी बाहर होते ही
मंच रंग-रूप बदलने लगा
अगली प्रस्तुति के अनुरूप