भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कितनी बार मरा जा सकता है प्रेम में / हालीना पोस्वियातोव्स्का
Kavita Kosh से
|
कितनी बार मरा जा सकता है प्रेम में
पहली बार लगती है धरती कटु
कड़वा-सा स्वाद
कसैला रंग
और आग-सा लाल गुडहल
दूसरी बार— स्वाद कुछ खाली-सा
श्वेत तरल
ठंडी हवा
अघोष गूँजते पहियों के स्वर
फिर तीसरी बार, चौथी बार, पाँचवी बार
दिनचर्या गुम हुई, पहले से कम बुलन्द
चारों तरफ़ दीवार है
और मेरे ऊपर छा रही है परछाईं तुम्हारी
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय