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कितने एकाकी ! / मल्लिका मुखर्जी
Kavita Kosh से
कितना समय बीत गया
याद नहीं
पर याद है –
हर सुबह चाय साथ बैठकर पीते-पीते
हम बुनते थे
अनगिनत सपने
अपने उज्ज्वल भविष्य के !
राहें पथरीली थी
फिर भी थकते नहीं थे
हमारे क़दम
क्योंकि,
हमारी मंज़िल एक थी
और आज ?
आज भी हम
हर सुबह चाय पीते हैं चुप-चाप
हमारे बीच नहीं होता कोई संवाद
बुने थे जो सपने,
कुछ साकार हुए,
कुछ ध्वस्त हुए हैं ।
कभी हम
एक-दूसरे के बिना अधूरे थे,
आज हमारे साथ है बस,
अधूरेपन का अहसास !