कितने सपनों को आँजकर आया
गाँव जब भी महानगर आया
मेरे सिर पर जो हाथ उसने रखा
तो अनायास कण्ठ भर आया
वो निकष पर निकल गया पीपल
शुद्ध सोने-सा जो नज़र आया
उड़ते पंछी को रोकना चाहा
तो मेरे हाथ एक पर आया
सच्चे जोहरीच्का हाथ लगते ही
रूप पुखराज का निखर आया
मैने मुड़कर उधर नहीं देखा
जिस झरोखे से उसका स्वर आया
जो कभी दूर ले गया था मुझे
रास्ता वो ही मेरे घर आया