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किनकर कोखि मे सीता जनम लेल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जिस प्रकार चावल राँधने के लिए दूध और हवन करने के लिए घी की आवश्यकता होती है तथा एक पुत्र के बिना संसार अंधकारमय दिखाई पड़ता है, उसी प्रकार बेटी के बिना माँ-बाप की जाँघ अशुद्ध होती है। बेटी के दान से जाँघ पवित्र हो जाती है।
प्रस्तुत गीत में बेटी की महत्ता का वर्णन है। पुत्र के साथ-साथ पुत्री का भी महत्व कम नहीं है। पुत्र से घर की शोभा बढ़ती है, लेकिन पुत्री दूसरे के घर की शोभा होती है। माँ-बाप यह जानते हुए कि इसे दूसरे के घर एक दिन जाना ही है, फिर भी दान-दहेज देकर विदा करते हैं और विदा करते समय उनका हृदय अगर विदीर्ण होने लगता है, तो इसमें कोई अस्वाभाविकता नहीं।

किनकर कोखि<ref>कोख; कुक्षि</ref> में सीता जनम लेल, किनकर कोखि रघुनाथ हे।
रचि रचि बाम्हन पोथिया बिचारऽ, राम सिया होयत बिआह हे॥1॥
जनक के कोखि में सीता जलम लेल, दसरथ कोखि रघुनाथ हे।
रचि रचि बाम्हन पोथिया बिचरै, राम सिया होयत बिआह हे॥2॥
कथि बिनु आहो बाबा चौरबो<ref>चावल</ref> नै सीझै, कथि बिनु होमो<ref>होम; हवन</ref> न होय हे।
कथि बिनु आहो बाबा जग अँधिआएल<ref>अंधकारमय</ref>, कथि बिनु जाँघ असूध हे॥3॥
दूध बिनु आगे बेटी चौरबो नै सीझै, घिआ<ref>घी</ref> बिनु होयत न होम हे।
एकहिं पुतर बिनु जग अँधिआयल, धिया बिनु जाँघ असूध हे॥4॥
कौने रीखि देलन हाथियो घोड़बा, कौने रीखि देलन धेनु गाय हे।
कौने रीखि देलन सीता ऐसन बेटी, कोने लेलन अँगुरी लगाय हे॥5॥
चाचा रीखि देलन हाथियो घोड़बा, भैया रीखि देलन धेनु गाय हे।
बाबा रीखि देलन सीता ऐसन बेटिया, राम लेलन अँगुरी लगाय हे॥6॥

शब्दार्थ
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