किन्नों के उड़ाक / मानिक बच्छावत
इस शहर के लोग
पतंग को किन्ना कहते हैं
तरह-तरह के पतंग यहाँ बनाए जाते हैं
मंजा याने धागा सूँता जाता है
उसे लटाई याने चरखी पर
लपेटा जाता है
लोग किन्नों की बाजियाँ लगाते हैं
वे घरों के डागलों याने छतों पर
जमा होते हैं
हर उड़ाक का अपना दल होता है
जो अलस्सुबह किन्नों में कनिया याने
धागे बांधकर पूरी तैयारी के साथ उड़ाते हैं
आपस में पेंच लड़ाने की स्पर्द्धा पहले से
तय होती है और लोग एक दूसरे को
ललकार अपने किन्ने आसमान में बढ़ाते हैं
अक्सर किन्नों के पेंच दो तरह के होते हैं
एक ढील में लड़के जाते हैं दूसरे
मंजे को तानकर लड़े जाते हैं पेंच में
जो किन्ना कट जाता है तो लोग जोश के
मारे प्रतिद्वन्दी पार्टी को ललकारते हैं
वो मारा वो काटा है और इस तरह खेल का यह
दौर रात तक चलता रहता है
शहर के नामी उड़ाकों में बिरजू बागड़ी गोपाल
कन्दोई जमालुद्दीन और फकीर मियाँ का नाम
इाट से लिया जाता है
किन्नों का यह त्यौहार खासकर आखातीज
याने अक्षयतृतीया के दिन विशेष तौर से
मनाया जाता है इन दिनों शहर के आकाश में
किन्ने ही किन्ने नजर आते हैं
लड़त के बीच किन्नों को ढेरिया डालकर
तोड़ना अपराध माना जाता है कभी-कभी
इस तरह की हरकत पर मारपीट भी
जमकर होती है वैसे गलियों में कटे हुए
किन्नों को लूटने कई छोकरे भागते रहते हैं और
लूट कर बड़े आनन्द का अनुभव करते हैं
बहरहाल किन्नों के उड़ाके बहुत बड़े
उस्ताद माने जाते हैं और उन्हें किन्नों की
हर अदा बखूबी मालूम होती है हवा के
रुख का भी उन्हें अच्छा ज्ञान होता है
तो बड़े उस्तादों की लड़तों पर
सट्टा भी लगता है
जो हो किन्नों का उड़ना इस शहर का एक
अभिन्न अंग है और इसके मौसम में
वे सब काम छोड़कर छत्ते पर चिपके रहते हैं
कभी-कभी छत से गिर जाने की दुर्घटना भी
होती है पर इसकी परवाह किये बिना किन्नों का
उड़ाया जाना जारी रहता है इस शहर को
अपने किन्नों के उड़कों पर गर्व है।